'अर्थ की तलाश में आदमी'

Go to gw2ru.com
Disclaimer:
This article is from the archive of the Russia Beyond project.
We have rebranded as 'Gateway to Russia' and now offer even more articles and resources about Russia.
Explore our updated website:
https://www.gw2ru.com/
कैदियों की मानसिकता को लेकर लेखक ने अपने पाठकों को मानसिक विश्लेषण की अपनी नई पद्धति 'लोगोथैरेपी' से परिचित करने का प्रयास किया है. लोगोथैरेपी का तात्पर्य है मनुष्य के जीवन को सार्थक करना.

नए वर्ष के आने के अवसर पर मैं एक किताब के बारे में लिखना चाहती हूँ, जिस का शीर्षक 'अर्थ की तलाश में आदमी' है. 

विक्टर फ्रान्कल, जो पुस्तक के लेखक हैं, ऑस्च्वित्ज़ और दूसरे कन्सेंत्रैष्ण कैम्पों के बारे में लिखते हैं, जिन में उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के समय में तिन साल बिताये थे. लेकिन उन की कहानी  कन्सेंत्रैष्ण कैम्पों की अन्य कहानियों से भिन्न लगती है. फ्रान्कल ने उन कठिनाइयों का विस्तृत वर्णन अपनी पुस्तक में नहीं दिया जिन को उन्हें झेलना पड़ा, उन पर बिना बल दिए आवश्यकता पड़ने पर उन का स्पर्श किया है. कैदियों की मानसिकता को लेकर लेखक ने अपने पाठकों को मानसिक विश्लेषण की अपनी नई पद्धति 'लोगोथैरेपी' से परिचित करने का प्रयास किया है. लोगोथैरेपी का तात्पर्य है मनुष्य के जीवन को सार्थक करना, और इस के साथ मनुष्य के कष्ट को सार्थक करना, जो ख़ुशी, आनंद, उदासीनता आदि के साथ-साथ हर एक आदमी के जीवन का एक अनिवार्य अंग होता है. 

कन्सेंत्रैष्ण कैम्प के वतावरण में रहना असहनीय लगता है. हर एक दिन लोगों को गाली दी गयीं थी, मारा गया था, और भूखा रखा गया था. कैदियों को हमेशा डर भी लगता रहा की उन्हें गैस चेम्बरों में भेजा जा सकता था. सब से बड़ी बात यह थी, कि वे लोग, जो  कन्सेंत्रैष्ण कैम्पों में रहे थे, नहीं समझते थे उन्हें वहां क्यों रखा गया था, इस का क्या कारण था, उन्हों ने क्या पाप किया कि सरकारी लोगों ने उन के जीवन को, उन के परिवारों को, तथा उन की स्वतंत्रता को नष्ट किया. उस स्थिति में लोग अपनी मृत्यु की कामना करने लगते थे क्यों कि अपनी किस्मत को स्वीकार करना असंभव-सा लगता था. जीवन के न्याय में विश्वास करना उन लोगों ने छोड़ दिया. प्रचालित लोकोक्तियाँ जैसे 'जो भी होता है, वह अच्छा है' या 'हर एक कष्ट हमारी शिक्षा है' आदि का अर्थ उन लोगों की समझ में नहीं आ रहा था. उन को ऐसा लगता था कि इन लोकप्रिय लोकोक्तियों को उन लोगों ने रचित किया जो  कन्सेंत्रैष्ण कैम्प में कभी नहीं रहे और'होलोकोस्ट' की घटना के बारे में कभी नहीं सुना. 

तथापि फ्रान्कल यह लिखते हैं कि इस स्थिति में भी - जब आदमी के जीवन का कोई मूल्य नहीं है, जब उस के पास कुछ नहीं बचा हुआ है, जब उस का पूरा परिवार गुज़र गया है, और जब वह हमेशा भूख, ठण्ड तथा बीमारी की स्थिति में रहता है, तब भी आदमी के पास एक चीज़ है - अपने जीवन के प्रति अपने रुख को चुनना. 

जो जीवन में हो रहा है, जिस स्थिति में आप रह रहे हैं - यह उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना इन सब के प्रति आप का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होता है. सब विपत्तियाँ, कठिनाइयाँ, और दुःख जो आप के सामने आते हैं उन सब के पार किया जा सकता है अगर इन परिस्थितियों में आप कोई अर्थ देखें, अगर आप समझते हैं,कि किस लिए और किस कारण से आप की ज़िन्दगी में ऐसी घटनाएँ हो रही हैं. नित्ज्स्चे [Nietzsche] ने कहा था: "जो यह जनता है, 'क्यों' रहना हैं, वह 'कैसे' भी झेल सकता है".

कष्ट फ्रान्कल की पुस्तक में एक बड़ी भूमिका निभाता है. मत सोचिये कि वे लोगों को कष्ट झेलने को प्रेरित करते हैं, बल्कि उन के अनुसार कष्ट में कुछ गलत नहीं है क्यों कि यह ख़ुशी, प्रेम, दोस्ती आदि के साथ-साथ अनिवार्य रूप से हमारे जीवन में मिलता है. अगर सब लोग प्रेम और ख़ुशी में कोई अर्थ देख पाते हैं, तो यातनाओं में कोई भी अर्थ हम लोगों को क्यों दिखाई नहीं देता है? जब कि वास्तव में यातनाएं हमारे लिए बहुत मूल्यवान होते हैं. 

पश्चिम में कष्ट पुराना हो चूका है. वहां की संस्कृति के अनुसार अपने आप को खुश दिखाना ज़रूरी है, नहीं तो तुम हरे हुए व्यक्ति हो. फ्रान्कल कहते हैं कि अमेरिका में कोई भी अपनी कठिनाइयों या विपत्तियों की चर्चा नहीं करता. दुखी होना लज्जा की बात है. अगर मनुष्य दुखी है, तो वह समाज के लिए अनुचित समझा जाता है, वह कमज़ोर कहा जाता है, और समसामयिक नहीं. इस प्रकार आज जब किसी को पीड़ा है तो उस की स्थिति दुगुनी कठिन हो जाती है - कठिनाइयों ही से तथा हरा हुआ महसूस होने से. 

फ्रान्कल यह नहीं बताते हैं कि हमें अपनी आप पर तरस खाना है, बल्कि वे यातना के प्रति सही रुख रखने को प्रेरित करते हैं, कुयों कि यह हमारी ज़िन्दगी का एक और पक्ष है. आप पूछ सकते हैं, कि फ्रान्कल के आनुसार यातनाएं अन्य स्थितियों से कम महत्वपूर्ण क्यों नहीं है? 

कन्सेंत्रैष्ण कैम्प में रहने के अपने अनुभव के आधार पर फ्रान्कल इस पर बल देते हैं, कि यातनाएं ही एक तरीका है जिस के माध्यम से हम अपनी शाक्तियों का परीक्षण करने का मौका प्राप्त करते हैं, परीक्षा को उतीर्ण कर सकते हैं, और अपने आप में विश्वास करके आतंरिक रूप से ज्यादा सामर्थ्य बन सकते हैं. कष्ट वह स्थिति है जो आध्यात्मिक विकास की और मनुष्य को ले जाती है, क्यों कि केवल कठिनाइयों का सामने करते हुए मनुष्य सहनशीलता, आत्मा-संतुलन, अपनी भावनाओं को काबू में रखना, और अपनी ज़िन्दगी के फैसलों के लिए ज़िम्मेदारी लेना सीखता है. कष्ट अपनी कमजोरियों को समझने का एक सुयोग है.   

ज़िम्मेदारी एक और विषय है जो फ्रान्कल अपनी पुस्तक में उठाया करते हैं. जितनी भी मुश्किल स्थिति क्यों न हो, वह उस पल में बदलने लगती है जब आदमी एक समझदार भरा फैसला लेता है. जब आदमी अपने हर एक कार्य के लिए, अपनी या किसी अन्य की ज़िन्दगी के लिए ज़िम्मेदारी लेने का तैयार हो जाता है, तब वह अपने आतंरिक विकास के नए स्तर पर पहुँचता है. 

आतंरिक स्वतंत्रता एक और चीज़ है जिस को, फ्रान्कल के ख्याल से, हमें सीखना चाहिए, और जिस की और हमें पहुँचने के प्रयत्न करना हैं. लेकिन स्वतंत्रता सिक्के का एक ही पक्ष है इस का दूसरा पक्ष है ज़िम्मेदारी. फ्रान्कल ने कहा: 'मैं चाहता हूँ कि न्यू-योर्क में स्वतंत्रता की मूर्ति के सामने ज़िम्मेदारी की मूर्ति हो'.स्वतंत्रता ज़िम्मेदारी बिना नहीं हो सकती है. जब ये दो सिद्धांत हर एक आदमी के हर फैसले के आधार बन जाएँ, तब पूरी दुनीया की स्थिति सुधरने लगेगी.

अक्सर हम हमारे जीवन से संतुष्ट नहीं हैं, अपने आप पर तरस खाते हैं, हमारी कठिनाइयों और बाधाओं पर विचार करते हैं - यह सब इस लिए होता है कि हमारे पास हमारी ज़िन्दगी से कुछ विशेष अपेक्षाएं हैं, हमारी कुछ इच्छाएं और चाहतें हैं कि हमारी ज़िन्दगी कैसी हो. बल्कि फ्रान्कल बोलते हैं कि यह बात गलत है क्यों कि 'यह महत्वपूर्ण नहीं है जो हम जीवन से अपेक्षा करते हैं, पर महत्वपूर्ण वह है जो जीवन की हम से अपेक्षा होती है'.

ज़िन्दगी एक समस्त चुनौती है जिस का तात्पर्य है हमारी आतंरिक शाक्तियों का परीक्षण करना, हमारी सहनशीलता, स्वीकार्यता, और लोगों के प्रति दया रखने की क्षमता का परीक्षण करना है. फ्रान्कल के आनुसार, यह मुख्य बात है कि हम हमारी अपेक्षाओं को हटाकर हमारी ज़िन्दगी की हर एक चुनौती को स्वीकार करके एक मौके के रूप में समझें जिस से हम अलग-अलग बाधाओं को पार कैसे करें यह सीखने का अवसर पाते हैं, बिना गुस्से में आये, बिना इर्ष्य किये, बिना अड़ियल रुख अपनाते हुए तथा बिना उतावला हुए. 

हमारे जीवन की हर एक घटना में अर्थ है. जो कुछ भी हमारे सामने आता है वह हमारे आतंरिक विकास के लिए होता है कि हम हमारी कमजोरियों, कमियों, और पापों का पता करके उचित रूप से उन से ऊपर उठ सकें और जीवन के प्रति नयी धारणाओं को लेकर आगे बढ़ सकें. 

दोस्तोएव्स्किय ने कहा था: 'मैं एक ही चीज़ से डरता हूँ कि मैं मेरी यातनाओं का योग्य नहीं हूँ'. 

All rights reserved by Rossiyskaya Gazeta.

This website uses cookies. Click here to find out more.

Accept cookies