माॅस्को ने एशिया की ओर मुड़ने का ऐलान किया है। नई दिल्ली रेड कारपेट पर रशिया के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारत का विशेष मित्र मानते हैं। पुतिन ने भारत की यात्रा में अपने अनेक मुद्दों को आधार दिया, जो ऊँचे सांकेतिक और विषय-वस्तु हैं।
यह यात्रा पुन: शक्ति प्रदान करेगी विशेष और विशेषाधिकार साझेदारी को, भारत और रशिया और कुछ अमान्यकारी मुद्दों को जैसे परमाणु मुद्दे,सुरक्षा और निवेश ।
पिछले दशक में, वार्षिक बैठक में नेताओं के भारत और रशिया के मित्रता और सौहाद्रता की झलक मिली,जो एक दूसरे के प्रति अच्छे संबंध को दर्शाता है न कि टालमटोल को।
21 वीं शताब्दी में पुतिन भारत और रशिया युद्धनीति संबंध के रचनाकार हैं। आने वाले कुछ सालों में तार्किक मुद्दों के द्वारा भारत और रशिया के संबंध सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ेंगें। अभी मुद्दे स्पष्ट नहीं हैं परंतु दोनों देशों की ओर से सुनिश्चित उद्देश्य नज़र आ रहे हैं।
दुनिया को स्पष्ट संदेश भेज रहे हैं, कि भारत और रशिया के संबंध नई ऊँचाईयों को छुने को तैयार हैं और यह संबंध अवसरवादी नहीं।
परमाणु सहयोग
भारत और रशिया युद्धनीति से संबंधित विशेष मुद्दा परमाणु सहयोग है।
पुतिन के भारत से संबंध इस बात कि उम्मीद जताते हैं कि भारत कुदानकुलम परमाणु शक्ति प्लांट जो दक्षिण राज्य में तमिलनाडु मे है ,का उद्देश्य शांति को समर्थन प्रदान करना और उसे कारगर बनाना है। रशिया के सहयोग से बनाया गया यूनिट I और II जिसकी क्षमता 1000 एम डब्लू है के शुरु होने का इंतजार है लेकिन परमाणु सहयोग के विरोधी इसमें रूकावट डाल रहे हैं।
के एन पी पी के यूनिट III और IV के मुद्दे पर बैठक में एक आम राय बनेगी,जो भारत के सामाजिक परमाणु कानून व्यवस्था के कारण हिचकी ले रही है।
रशिया ने बहस की है कि सामाजिक कानून व्यवस्था इस मामले में लागू नहीं करनी चाहिए जिन पर सहमति 2010 में हो चुकी है और जिसकी मूल वजह 1998 की वास्तविक सहमति है। लेकिन भारत ने यह साफ कर दिया है कि रशिया एक अपवाद है सामाजिक परमाणु कानून व्यवस्था बढ़ावा दे रहा है ,यूएस और फ्रांस की बीमार व्यवस्था नई दिल्ली को बर्दाशत करनी पड़ सकती है। स्रोत के अनुसार दोनों देशों की परमाणु सहयोग को दाँव पर रखना होगा। एक बीच का रास्ता है कि समझौते के रास्ते पर चल कर एक आम सहमति निकाले।
जुलाई में दोनों देश के परमाणु आफिसर्स ने माॅस्को में वित्तीय समझौते पर हस्ताक्षार किए, रूस के तरफ से यूनिट III और IV को भेजने का आधार 3.4 बिलियन डालर स्वीकृति देना है।
व्यापार में उछाल
व्यापार और आर्थिक संबंधों के तरफ बढ़ते कदम मुख्य मुद्दे हैं। बाइलेट्रल व्यापार का स्तर अभी भी 10 बिलियन डालर है, यह महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि साझा लागत अब भी काफी कम है। आपस के बाजारों की कम जानकारी की वजह से प्रोड्यूसर इसे बोझिल समझते हैं। इस विषय में कुछ निश्चित धारा रेखाएँ व्यापारियों के लिए हैं। दोनों पक्षों से उम्मीद है कि 2015 में 20 बिलियन डालर का बाइलेट्रल व्यापार दोहराया जा सकता है।
पुतिन द्वारा बेलारूस-कज़ाकस्तान-रूस कस्टम यूनियन को दिए जाने वाले महत्व को देखते हुए, भारत कस्टम यूनियन के साथ एक समग्र आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) की संभावनाएं खोजने के लिए अपनी तैयारी की घोषणा कर सकता है।
आर्थिक मोर्चे पर दोनों पक्ष सिस्तेमा गतिरोध के समाधान का प्रयास करेंगे। विशाल रूसी कंपनी सिस्तेमा द्वारा भारत के एक संयुक्त उपक्रम में किए जाने वाले 3.1 बिलियन डॉलर के निवेश की सुरक्षा को लेकर रूस ठोस आश्वासन चाहेगा, जबकि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घूसखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा फरवरी में सभी 122 लाइसेंस (इसमें सिस्तेमा श्याम टेलीसर्विसेज का लाइसेंस भी शामिल है) निरस्त कर देने से संकट में पड़ गया है। चूंकि मामला अभी न्यायपालिका में है, इसलिए भारतीय प्रधानमंत्री नए सिरे से आश्वासन तो दे सकते हैं, लेकिन इस खटाई में पड़े मसले का ठोस समाधान निकलने की उम्मीद नहीं दिखती।
सुरक्षा संबंध
भारत और रशिया का सुरक्षा संबंधी रिश्ता एक पथरीले रास्ते पर है। मास्को ने भारत को 60% सुरक्षा से संबंधित सामान दिए हैं। यह एक संतुलित उछाल दे रहा है, दो देशों ने भविष्यवाद गोपनीय 15 जेनरेशन फाइट्र के लिय विशेष संधि की है। अगर सब कुछ अच्छा रहा तो दोने देश आर एंड डी फेस पर 15 जेनरेशन फाइट्र संबंध स्थापित अपनी यात्रा के दौरान करेंगें। अन्यथा दो देशों के बीच का यह समझौता जिसमें भारत 35 बिलियन डालर खर्च करेगा आने वाले अगले 20 वर्षों में सबसे बड़ा सुरक्षा योजना होगा।
प्रादेशिक मामले
द्विपक्षीय मामले के बाबजूद, मनमोहन सिंह और पुतिन ग्लोबल और प्रादेशिक मामले के मुद्दे को लेकर मिले। दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान की स्थिति सामान्य होने की उम्मीद लगा रखी है और यह सहयोग भारत और रशिया के अंतराष्ट्रीय जागरूकता का सामूहिक प्रयास है।
उत्तरी गठबंधन में भारत और रूस ने भी साझेदारी की थी, जिसने 2001 में तालिबानी शासन को उखाड़ फेंकने में मदद की तथा हितों के मिलने और तालिबान से जुड़े उग्रवादी नेटवर्कों से खतरे का साझा एहसास होने के कारण दोनों देश आने वाले दिनों में तथा 2014 के बाद अफगानिस्तान में स्थिरता कायम करने की दिशा में प्रबल सहयोग को प्रेरित होंगे।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रूसी हिस्सेदारी की पुतिन द्वारा घोषणा, और इस क्षेत्र में अमेरिका द्वारा सुरक्षा संदर्भ में भारत को विशेष महत्व दिए जाने के कारण, इस क्षेत्र में भी सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा की उम्मीद की जा सकती है, जो बड़ी शक्तियों के बीच स्पर्धा का नया मैदान बनकर उभरा है।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत एक प्रमुख सामरिक साझेदार है, ऐसा पुतिन ने फरवरी के अंत में एक रूसी दैनिक मॉस्कोव्स्की नोवोस्ती के एक चर्चित आलेख में कहा था।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन का नवम्बर में भारत का दौरा, दोनों देशों के बीच संबंधों में नयी ऊर्जा लाएगा।
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